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क्या पुरुषों को सम्मान से जीने का अधिकार नहीं ?

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[False dowry case? Man kills self Express news service  Posted: Feb 07, 2008 at 0321 hrs Lucknow, February 6  A 30-year-old man, Pushkar Singh, committed suicide by hanging himself from a ceiling fan at his home in Jankipuram area of Vikas Nagar, on Wednesday.In a suicide note, addressed to the Allahabad High Court, Singh alleges that he was framed in a dowry case by his wife Vinita and her relatives, due to which he had to spend time in judicial custody for four months. ''मुझे दहेज़ कानून की धारा ४९८-ए,३२३ और ५०४ के तहत जेल जाना पड़ा ,मेरी पत्नी विनीता ने शादी के 2 साल बाद हमारे परिवार के खिलाफ दहेज़ के रूप में 14 लाख रुपये मांगने का झूठा मुकदमा लिखाया था .इतनी रकम कभी मेरे पिता ने नहीं कमाई ,मैं इतना पैसा मांगने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता था ,मेरी भी बहने हैं ,इस मुक़दमे के चलते मेरा पूरा परिवार तबाह हो गया है ,हम आर्थिक तंगी के शिकार हो गए ,मकान बिक गया ,अब मैं ज़िंदा नहीं रहना चाहता हूँ ख़ुदकुशी करना चाहता हूँ ,मेरी मौत के लिए मेरी ससुराल के लोग जिम्मेदार होंग

डबल ग्रुप से ऐसी बिजली

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  लगे हुए थे एक माह से ,हिन्दू मुस्लिम भाई , थम गया था जीवन सारा ,चौपट हुई कमाई . मना रहे थे अफसरों को ,देकर दूध मलाई , नेताओं ने भी आकर ,पीठ थी थपथपाई . बिलबिलाते गर्मी से ,छत पर खाट जमाई, पंखा झलते-झलते रहते ,नींद न फिर भी आई . धरने करते नारे गाते ,बिछा के जब चटाई, सीधी बातों से न माने ,तब की खूब पिटाई . लातों के इन भूतों के ,तब बात समझ में आई , बिजली आने की परमिशन ,ऊपर से दिलवाई . बजे नगाड़े ढोल तमाशे ,सबने खाई मिठाई , गले मिले और हाथ मिलकर ,दी गयी खूब बधाई . डबल ग्रुप से ऐसी बिजली,देख के शामत आई , न चमकी दिन में आकर,न रात को पड़ी दिखाई .                  शालिनी कौशिक                            [कौशल]

महंगाई तो महंगाई पर सबसे महंगी हमारी महत्वाकांक्षा

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महंगे द‌िन: डीजल, रसोई गैस और केरोसिन के बढ़ेंगे दाम अभी और बढ़ेगी महंगाई डीजल के बाद सरकार रसोई गैस और केरोसिन के दाम बढ़ाने जा रही है। रसोई गैस सिलेंडर की कीमत हर महीने पांच रुपये और केरोसिन के दाम प्रति लीटर पचास पैसे से एक रुपया तक बढ़ाने पर विचार हो रहा है ताकि इन दोनों ईंधनों पर 80,000 करोड़ की सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म की जा सकी। [अमर उजाला से साभार ] महंगाई तो मार ही गयी पर हमारी महत्वाकांक्षा  का क्या. आप सोच रहे होंगे कि  मैं फिर उलटी बात करने बैठ गयी.  समाचार पत्रों में गैस ,डीजल और केरोसिन के दाम बढ़ने की सूचना  प्रमुखता पा रही है .सरकार की जिम्मेदारी जनता जनार्दन के बजट की बेहतरी देखना है ये मैं मानती हूँ और यह भी मानती हूँ कि  सरकार इस कार्य में पूर्णतया विफल रही है किन्तु जहाँ तक सरकार की बात है उसे पूरी जनता को देखना होता है और एक स्थिति एक के लिए अच्छी तो एक के लिए बुरी भी हो सकती है किन्तु हम हैं जिन्हें केवल स्वयं को और अपने परिवार को देखना होता है और हम यह काम भी नहीं कर पाते.        आज जो यह महंगाई की स्थिति है इसके कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं .

हम सबके प्यारे''रिश्ते''

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कभी हमारे मन भाते हैं, कभी हैं इनसे दिल जलते, कभी हमें ख़ुशी दे जाते हैं, कभी हैं इनसे गम मिलते, कभी निभाना मुश्किल इनको, कभी हैं इनसे दिन चलते, कभी तोड़ देते ये दिल को, कभी होंठ इनसे हिलते, कभी ये लेते कीमत खुद की, कभी ये खुद ही हैं लुटते, कभी जोड़ लेते ये जग को, कभी रोशनी से कटते, कभी चमक दे जाते मुख पर, कभी हैं इनसे हम छिपते, कभी हमारे दुःख हैं बांटते, कभी यही हैं दुःख देते, इतने पर भी हर जीवन के प्राणों में ये हैं बसते, और नहीं कोई नाम है इनका हम सबके प्यारे''रिश्ते'' ....................................................................... शालिनी  कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com

आत्महत्या -हत्या परिजनों की

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आत्महत्या -परिजनों की हत्या          आज आत्महत्या के आंकड़ों में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है .कभी भविष्य को लेकर निराशा ,तो कभी पारिवारिक कलह ,कभी क़र्ज़ चुकाने में असफलता तो कभी कैरियर में इच्छित प्राप्त न होना  ,कभी कुछ तो कभी कुछ कारण असंख्य युवक-युवतियों ,गृहस्थों ,किशोर किशोरियों को आत्म हत्या के लिए विवश कर रहे हैं और हाल ये है कि आत्महत्या ही उन्हें करने वालों को समस्या के एक मात्र हल के रूप में दिखाई दे रही है ,शायद उनकी सोच यही रहती है कि इस तरह वे अपनी परेशानियों से अपने परिजनों को मुक्ति दे रहे हैं किन्तु क्या कभी इस ओर कदम बढाने वालों ने सोचा है कि स्वयं आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाकर  वे अपने परिजनों की हत्या ही कर रहे हैं ?                  आत्महत्या एक कायरता कही जाती है किन्तु इसे करने वाले शायद अपने को बिलकुल बेचारा मानकर इसे अपनी बहादुरी के रूप में गले लगाते हैं .वे तो यदि उनकी सोच से देखा जाये तो स्वयं को अपनी परेशानियों से मुक्त तो करते ही हैं साथ ही अपने से जुडी अपने परेशानियों से अपने परिजनों को भी मुक्ति दे देते हैं क्योंकि मृत्यु के बाद उन्हें हमारे वेद-पुराणों के

जिंदगी की हैसियत

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बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है , जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है . ............................................................ न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें , फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है . ........................................................ पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के , रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है . ......................................................... . नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में , खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं. ................................................................ मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते , सोचते इस पर फ़तेह  हमने हासिल की है . ................................................................... जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी , मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है . ............................................... शालिनी कौशिक  [कौशल ]

कैराना उपयुक्त स्थान :जनपद न्यायाधीश शामली :

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कैराना  उपयुक्त  स्थान  : जनपद  न्यायाधीश  शामली :  जिला न्यायालय के लिए शामली के अधिवक्ता इस सत्य को परे रखकर  न्यायालय के कार्य  को ठप्प किये हैं जबकि सभी के साथ शामली इस प्रयोजन हेतु कितना उपयुक्त है वे स्वयं जानते हैं.               शामली  28 सितम्बर २०११ को मुज़फ्फरनगर से अलग करके   एक जिले के रूप में स्थापित किया गया .जिला बनने से पूर्व   शामली तहसील रहा है और यहाँ तहसील सम्बन्धी कार्य ही निबटाये जाते रहे हैं. न्यायिक कार्य दीवानी ,फौजदारी आदि के मामले शामली से कैराना और मुज़फ्फरनगर जाते रहे हैं .     आज कैराना न्यायिक  व्यवस्था  के मामले में उत्तरप्रदेश में एक सुदृढ़ स्थिति रखता है     कैराना में न्यायिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि के बारे में बार एसोसिएशन कैराना के पूर्व अध्यक्ष ''श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट ''जी बताते हैं -                                           ''    '' सन १८५७ में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रथम  स्वतंत्रता संग्राम के द्वारा  ऐतिहासिक क्रांति का बिगुल बजने के बाद मची उथल-पुथल से घबराये ब्रिटिश शासन के अंतर्गत  संयु

नहीं इंसान के वश में ,

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आंसू पीकर मुस्कुराना ,नहीं इंसान के वश में , ठोकर खाकर हँसते जाना ,नहीं इंसान के वश में . .......................................................................................... संभलने की कोशिशें लाख ,भले ही हम यहाँ कर लें , ज़ख्म की टीस को सहना ,नहीं इंसान के वश में . ................................................................................. कलेजा हो रहा छलनी ,फरेब देख अपनों के , मगर खुलकर ये सब कहना ,नहीं इंसान के वश में . ........................................................................... हमारे जज़्बातों से खेलना ,फितरत में है जिनकी , उन्हीं के जैसे हो जाना ,नहीं इंसान के वश में . ....................................................................... बहाये जा यूँ ही आंसू ,यही है किस्मत 'शालिनी ' कभी दुःख से निकल पाना ,नहीं इंसान के वश में . ............................................................... शालिनी कौशिक       [कौशल ]

झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,[पितृ दिवस पर विशेष]

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झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में , ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं . ...................................................................................  बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ , ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं . ............................................................................... शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे , मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं . ......................................................................... मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें , सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं . ................................................................................... कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर, सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं . .............................................................................. जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें , अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं . .................................... शालिनी

बालश्रम -क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं ?

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  ''बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,  उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .''      आज बचपन इसी भयावह दौर से गुज़र रहा है .सड़कों पे आते जाते कोई भी इस भयावहता को देख सकता है .जगह -जगह निर्माण कार्य चलते हैं और उनके लिए जिन दुकानों से माल -रोड़ी ,सीमेंट आदि मंगाए जाते हैं वहां इस काम के लिए लगाये जाते हैं छोटे-छोटे बच्चे जिनकी उम्र मुश्किल से ११-१२ या १० साल की ही होगी और जिन्हें पैसे देने की जिम्मेदारी माल ऑर्डर करने वाले पर होती है जो कि उन्हें प्रति ठेली के लगभग ५ रूपये के हिसाब से अदा करता है . ''लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,  हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .''   गली-गली में आवाज़ लगाकर लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी बेचने को आवाज़ें लगाते फिरते बच्चे होश संभालते ही साइकिल व् तराजू लेकर निकल पड़ते हैं और घर-घर जाकर लोगों से कबाड़ खरीदते हैं और ध्यान से देखा जाये तो १२-१३ साल से ऊपर का शायद ही कोई बच्चा होगा . ''खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,  दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .''  

समाज की बलि चढ़ती बेटियां

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समाज की बलि चढ़ती बेटियां 'साहब !मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले लड़की को प्रताड़ित करते हैं उसे अपने मायके से कुछ लाने को विवश करते हैं और ऐसे मे बहुत सी बार जब नाकामी की स्थिति आती है तब या तो लड़की की हत्या कर दी जाती है या वह स्वयं अपने को ससुराल व् मायके दोनों तरफ से बेसहारा समझ आत्महत्या कर लेती है . सवाल ये है कि ऐसी स्थिति का सबसे बड़ा दोषी किसे ठहराया जाये ? ससुराल वालों को या मायके वालों को ....जहाँ एक तरफ मायके वालों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होती है वहां ससुराल वालों को ऐसी चिंता क्यूं नहीं होती ? इस पर यदि हम साफ तौर पर ध्यान दें तो यहाँ ऐसी स्थिति का एक मात्र दोषी हमारा समाज है जो ''जिसकी लाठी उसकी भैंस '' का ही अनुसरण करता है और चूंकि लड़की वाले की स्थिति कमजोर मानी जाती है तो उसे ही दोषी ठहराने से बाज

हिन्दू-मुस्लिम भेद -समझ समझ का फेर

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एक सार्वभौमिक सत्य के बारे में आप सभी जानते ही होंगें कि दूध गाय -भैंस ही देती हैं और जहाँ तक हैं इनका कोई धर्म जाति नहीं होती ,इनमे आपस में होती हो तो पता नहीं किन्तु जहाँ तक इंसान की बात है वह इस सम्बन्ध में  कम से कम मेरी जानकारी के अनुसार तो अनभिज्ञ ही कहा जायेगा .      पर आज मेरी यह जानकारी धरी की धरी रह गयी जब मैंने अपने पड़ोस में रहने वाली आंटी जी को पड़ोस की ही दूसरी आंटी जी से बात करते सुना ,वे उनसे दूध के बारे में पूछ रही थी और ये  बता रही थी कि उन्हें अपने यहाँ के एक धार्मिक समारोह के लिए ज्यादा दूध की आवश्यकता है। दूसरी आंटी  के ये कहने पर कि उनका दूधवाला बहुत अच्छा दूध लाता है पर वे फटाक से बोली लाता तो हमारा दूधवाला भी बहुत बढ़िया दूध है पर वह मुसलमान है ना ,......................................................आश्चर्य से हक्की-बक्की रह गयी मैं उनकी इस बात पर कि वे दूधवाले के मजहब से दूध-दूध में भेद कर रही हैं जबकि उन्हें दूध चाहिए था जो या तो गाय देती है या भैंस ,आज तक दूध के मामले में गाय-भैंस का अंतर तो सुना था पर हिन्दू-मुसलमान का अंतर कभी नहीं, मन में विचार आया कि

''छोड़ दे अब टिमटिमाना भोर का तारा है तू -नशे में फंसती युवा पीढ़ी

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''मादक पदार्थों की गिरफ्त में  घिरे हुए हमने भी देखा है क़र्ज़ में डूबे हुए हिंदुस्तान का , बिक चुके आत्म-सम्मान का , फलते-फूलते भ्रष्टाचार का , चार कदम गुलामी की ओर .''  शाप और अभिशाप दोनों समानार्थक होते हुए भी अपने में बड़ा अंतर छिपाए हुए हैं .शाप वस्तु विशेष ,समय विशेष आदि के लिए होता है ,जबकि अभिशाप जीवन भर घुन की भांति लगा रहता है .सुख प्राप्ति के लिए चिंताग्रस्त आज का मानव चेतना और चिंतन से बहुत दूर है .भय ,कायरता ,विषाद ,ग्लानि और असफलताएँ उसके मन और मस्तिष्क पर छायी रहती है .खिन्नता और क्लांति को मिटाने के लिए वह दोपहरी में प्यासे मृग की भांति कभी सिनेमाघर की ओर मुड़ता है तो कभी अन्य मन बहलाव के साधनों की ओर ,पर वहां भी उसकी चेतना उसे शांति से नहीं बैठने देती .वह दुखी होकर उठ खड़ा होता है -''क्या संसार में ऐसा कुछ नहीं जो कि तेरी चेतना को कुछ देर के लिए अचेतना में परिवर्तित कर दे ''-''मन मस्तिष्क से प्रश्न पूछता है और बिना कहे बिना उत्तर मिले पैर मुड़ जाते हैं मदिरालय की ओर ,जहाँ न शोक है और न दुःख ,जहाँ सदैव दीवाली मनाई जाती है और बस