मर गए गांधी परिवार को मारने वाले .



मन नहीं करता किन्तु बहुत सी बार अपनी इच्छा के विरुद्ध भी बहुत से कार्य करने पड़ते हैं .राजनीति न कभी एक आम आदमी के जीवन में कोई स्थान रखती है और न ही कभी रखेगी .बहुत बार स्वयं को रोका कि क्यूँ इस विषय पर मैं लिखकर अपना समय बर्बाद कर रही हूँ किन्तु न कभी गलत का साथ दिया है और न ही दूँगी और मन में यही दृढ इच्छाशक्ति होने के कारण  नरेंद्र मोदी जैसे शख्स के बिना बात ही गाल बजने वाले वक्तव्यों का जवाब देने मैं भी बार बार इस जंग में कूद पड़ती हूँ क्योंकि जानती हूँ कि जिस परिवार के खिलाफ अनर्गल प्रलाप कर वह अपनी लहर दिखा रहा है अपनी वीरता दिखा रहा है वह मात्र असभ्यता की पराकष्ठा है और कुछ नहीं 
      आज देश में लोकसभा चुनाव २०१४ के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों का अभियान जारी है और कोई दल भ्रष्टाचार  के खिलाफ तो कोई महंगाई के खिलाफ ये चुनाव लड़ रहा है किन्तु एक मात्र प्रधानमंत्री पद का घोषित उम्मीदवार अपने लिए कोई मुद्दा रखता ही नहीं उसके पास अपने को चर्चा में बनाये रखने का बस एक मुद्दा है ''चुनाव बाद गांधी परिवार की राजनीति खत्म हो जाएगी ''और इस जंग में वह केवल इसी परिवार के खिलाफ लड़ रहा है क्योंकि कांग्रेस को तो वह इस परिवार के सामने बेचारी करार देते है वह नरसिंह राव को बेचारा कहते  है ,वह सीताराम केसरी को बेचारा कहते  है ज्यादा दूर नहीं जब वह अपने को भी बेचारा कहेगा क्योंकि जिस परिवार की राजनीति ख़त्म करने की वह बात कर रहे हैं वह कोई राजनीति करता ही नहीं है वह केवल और केवल देश सेवा करते हैं .
    पंडित जवाहर लाल नेहरू को आज ये अवसरवादी कुछ भी कह लें किन्तु और सब बातें और उनकी देश सेवा को यदि हम एक तरफ रखने की एहसान फरामोशी कर भी लें तब भी वे महात्मा गांधी की पसंद थे और महात्मा गांधी वे महान आत्मा थे जिन्होंने देश को केवल दिया बदले में कुछ नहीं लिया और उनकी पसंद पर ऊँगली उठाना उनकी देश सेवा पर ऊँगली उठाना है .
    इंदिरा गांधी देश की आज तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री हम यदि इनके इस परिवार की होने के नाते प्रधानमंत्री बनने की बात एक तरफ रखकर अपने विचारों को महत्व दे भी दें तब भी बैंकों का राष्ट्रीयकरण ,अग्नि मिसाइल ,और तो और ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए हम अपनी शक्ति स्त्रोत इंदिरा जी को कभी भी अनदेखा नहीं कर सकते ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण उन्हें अपने प्राण तक गवाने पड़े किन्तु सभी जानते हैं कि इस वीरता के कार्य को वे ही अंजाम दे सकती थी और उनका ये कदम हम सभी के लिए आज भले ही सूक्ष्म महत्व का हो किन्तु जब इंदिरा जी ने इस कार्य को किया तब स्वर्ण मंदिर में हथियार इक्कठा किये जाने की ख़ुफ़िया रिपोर्ट थी और ख़ुफ़िया रिपोर्ट पर ऐसी सशक्त कार्यवाही इंदिरा जी ने ही की और इसके महत्व को हम कृतघ्न की भांति कभी भी अस्वीकार नहीं कर सकते .
    राजीव गांधी कभी भी राजनीति में नहीं आते यदि उनके छोटे भाई संजय जीवित रहते किन्तु राजीव जी इस परिवार की संतान थे और इस परिवार की संतान कभी भी भारतीय संस्कृति की अवहेलना नहीं कर सकती .वे राजनीति में आये और उन्होंने देश को संचार क्रांति द्वारा एक नए युग में पहुचाया ,आज युवा वोट डालकर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं ये अधिकार १८ वर्ष के युवाओं को राजीव गांधी ने ही दिलाया था .
   सोनिया गांधी जिन्हें हमारे देश की जनता ने अपनाया किन्तु ये अपनाना यहाँ के नेताओं को कभी नही भाया उन्होंने कभी उन्हें सत्ता की लालची तो कभी राजनीति की पिपासा रखने वाली दिखाना चाहा जबकि राजीव जी की हत्या के बाद वे राजनीति से ७ साल तक दूर रही 
[ After her husband's assassination in 1991, she was invited by Congress leaders to take over the government;[5] but she refused and publicly stayed away from politics amidst constant prodding from the party. She finally agreed to join politics in 1997; in 1998, she was elected President of the Congress.[विकिपीडिया से साभार ]
और राजनीति में आई भी तब जब अपने पुरुखों द्वारा अपने खून पसीने से सींची गयी पार्टी को कुछ छुटभैयों नेताओं द्वारा पतन की ओर जाने की दशा में देखा और वे आई .उनका आना किसी भी विपक्षी पार्टी को नहीं भाया क्योंकि वे सब सोच चुके थे कि अब कांग्रेस का सफाया हो गया है अब यह कभी नहीं उठ पायेगी .ऐसे में जबकि राजीव जी को बम विस्फोट द्वारा मार दिया गया और देश में चारों ओर दुःख की लहर थी तब भी इस भाजपा को केवल राजनीति ही सूझ रही थी इनके युगपुरुष तब भी जीवन की नश्वरता नहीं अपितु अपने लिए सत्ता की कुर्सी देख रहे थे उन्होंने कहा -''कांग्रेस स्थिरता की बात करती थी आज खुद ही अस्थिर हो गयी .''.अब ऐसे में जबकि सोनिया जी भी राजनीति से दूर थी तब सभी की नज़रों में कांग्रेस का महत्व समाप्त हो गया था तब सोनिया जी के आने पर कांग्रेस का दोबारा उठ खड़ा होना इनकी छाती पर सांप लौटने के लिए पर्याप्त ही कहा जायेगा और रही बात उनकी राजनीति को तो उन्होंने कभी राजनीति नहीं की वे राजनीति में इंसानियत को ही जीवित करती आई हैं और यह उन्होंने २००४ में प्रधनमंत्री पद ठुकरा कर साबित भी कर दिया भले ही विपक्षी अपने मन की संतुष्टि के लिए इसे कुछ भी कह लें किन्तु वह विदेश मीडिया जिसे आज नरेंद्र मोदी के ख़बरें लेते प्रसारित करते दिखाया जा रहा है उसी विदेशी मीडिया ने सोनिया जी के इस कार्य की सम्पूर्ण विश्व में प्रशंसा की थी और किसी भी हस्ती द्वारा किये जाने वाला त्याग का अनुपम उदाहरण बताया था .
राहुल गांधी को तो इन विपक्षियों ने अभद्रता की हदें पार करते हुए बहुत कुछ कहा है किन्तु वे भारतीय संस्कारों में बंधे हैं और ऐसा नहीं है कि कहते नहीं कहते हैं किन्तु उतना ही जितना विपक्षी को उसके कथनों का आईना दिखाने हेतु पर्याप्त हो और उनके लिए भी यहाँ केवल देश सेवा का महत्व है किसी पद का नहीं क्योंकि सारी सरकार हाथ में होते हुए भी मंत्री पद तक न लेना किसी महान देशभक्त द्वारा ही हो सकता है और रही बात विपक्षी द्वारा उनकी काबिलियत पर ऊँगली उठाने की तो सब जानते हैं कि यहाँ कितने मंत्री काम करते हैं काम सारी आई.ए.एस.लॉबी करती है इनका काम केवल हस्ताक्षर करना होता है और जब बिलकुल अनुभवहीन ऐसा कर सकते हैं तब राहुल गांधी की योग्यता को इस तरह से तो सस्ते आरोपों के घेरे में तो नहीं लाना चाहिए जबकि वे अब दस साल से संसद होने की योग्यता वाले हैं .
आज मोदी बस इस परिवार के खिलाफ आग उगलने में लगे हैं .प्रियंका गांधी ने उनके खिलाफ  मोर्चा संभाला तो उन्होंने पहले तो बेटी कहकर अपने को उनसे बचाना चाहा किन्तु स्वयं उनके पिता -माँ के खिलाफ ऐसी टिप्पणी  करते रहे कि वे कुछ भी कहें और ये पकड़कर अपने लिए कुछ तो राह बनायें क्योंकि मीडिया प्रियंका के आते ही इनकी बकवास से हटता जा रहा था .
[बता दें कि सोमवार को मोदी ने चुनावी सभा में कांग्रेस के साथ राजीव गांधी पर भी कटाक्ष किया था। इसकी प्रतिक्रिया में प्रियंका गांधी ने कहा था, ‘मेरे पिता का अमपान किया गया है। इस नीच राजनीति का अमेठी की जनता जवाब देगी।’]
         
अपने ही कथनों द्वारा मोदी ने खुद को गलत साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है .देश में कोई जाति नीच है या उच्च इसे कोई और नहीं कह रहा आज वही इस शब्द को कहता फिर रहा है जिसे इसके माध्यम से कोई फायदा लेना है और मोदी ने यही पकड़ा और लगे अपने गाल बजाने और इस बात का अपने हिसाब से फायदा उठाने की जिस कोशिश का गुब्बारा वे फुलाकर फायदा लेना चाह रहे थे उसे पिछड़ा वर्ग की सशक्त हिमायती मायावती जी ने ही फोड़ दिया और उनसे पूछ लिया कि आखिर वे किस पिछड़े वर्ग से हैं और या सवाल उनसे उसी वर्ग की नेता ने पूछा है जिसका फायदा लेने की जुगत में लगे होने के कारण वे लगभग सभी पर कीचड उछालने में लगे होने के बाद और स्वयं मायावती जी द्वारा निरंतर स्वयं पर हमले होने के बावजूद भी कोई जवाब नहीं दे रहे हैं क्योंकि वे उनका कोई अपमान नहीं करना चाहते शायद चुनाव बाद उनसे समर्थन की उम्मीद रखकर और क्योंकि इस गांधी परिवार से ऐसे किसी समर्थन की उम्मीद नहीं है और साथ ही इनकी खिलाफत कर स्वयं को परमवीर दिखाने की चाहत इसलिए अनर्गल कुछ भी बोलकर इनका अपमान करने में जुटे हैं जिन्होंने इस देश को केवल और केवल दिया है .आनंद भवन तो महज एक इमारत है इस परिवार ने देश के लिए बलिदान दिए हैं और इसे केवल भारतीय जनता और वह भी वो जो केवल भावनाओं के दम पर जीती है न कि स्वार्थ के ऊपर और जिसके लिए केवल और केवल भारतीय जनता के मन में यही भाव हैं -
  ''जाको राखे साइयां ,मार सके न कोय .''

शालिनी कौशिक 
     [कौशल ]

टिप्पणियाँ

Neetu Singhal ने कहा…
संस्कार एवम संस्कृति का शाब्दिक अर्थ ही शुद्धता, परिष्कृत, परमार्जित होता है | भारत की संस्कृति संकरता अथवा घालमेल कभी नही रही.....
Neetu Singhal ने कहा…

जिस आयु वर्ग को आटे-दाल का भाव ज्ञात नहीं, क्या वह दान देने का अधिकारी है.....?

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