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अक्तूबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मोदी नाग बन बैठे हमें काट खाने को

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मोदी नाग बन बैठे हमें काट खाने को . जिन्हें हमने गले का हार समझा था गले को सजाने को , वही नाग बन बैठे हैं हमें काट खाने को . ''पटेल होते पहले पी.एम्. तो देश की तस्वीर कुछ और होती ''मोदी के ये वचन भारतवर्ष में वीरता ,शहादत और जनता की सरकार को नकारने की जो राष्ट्रद्रोही छवि होनी चाहिए को प्रत्यक्ष करने को पर्याप्त हैं .सर्वप्रथम तो मोदी का प्रधानमंत्री के समक्ष अशोभनीय आचरण उस पर ट्विटर का इस्तेमाल कर सरेआम उनकी अवमानना का प्रयास और लाल किले की प्रतिकृति पर खड़े हो कर स्वयं को भारतीय गणतंत्र का प्रधानमंत्री दिखाने का प्रयास न केवल संविधान द्वारा सृजित राष्ट्र्व्यवस्था का अपमान है बल्कि एक ऐसा कुत्सित कार्य है जिसे भारत में राष्ट्रद्रोह घोषित किया जाना चाहिए अन्यथा न केवल मोदी बल्कि उनकी ही तरह कोई भी सड़क चलता सरकार की बराबरी करने लगेगा और इस तरह भारत राष्ट्र की छवि को सारे विश्व में धक्का पहुंचेगा . आज जब न पटेल हैं और न नेहरू तब इस तरह की बातें उछालकर मोदी जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ के लिए प्रयासरत हैं और यह सोचकर कि ''बदनाम भी हुए तो क्या ,नाम तो हुआ ''

बिहार आतंकवादी हमला :फायदा एकमात्र भाजपा को .

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बिहार आतंकवादी हमला :फायदा एकमात्र भाजपा को . .यूँ तो यहाँ बिहार में जो हुआ आतंकवाद के कारण हुआ किन्तु आतंकवादी घटनाओं के पीछे भी एक सच छुपा है और वह यह है कि इन्हें कोई देश में मिलकर ही अंजाम दिलवाता है और ऐसा क्यूँ है कि भाजपा का जबसे नितीश से अलगाव हुआ है तभी से बिहार भाजपा के लिए खतरनाक हो गया है और जब भी भाजपा वहाँ कदम रखती है तभी वहाँ कुछ न कुछ आतंकवादी घटना घट जाती है . नितीश कुमार वहाँ शासन कर रहे हैं और ये स्वाभाविक है कि वहाँ कोई भी ऐसी घटना होगी तो उसमे उनकी सरकार की लापरवाही ही कही जायेगी और भाजपा और नितीश के सम्बन्ध अभी हाल ही में मोदी के कारण अलगाव पथ पर अग्रसर हुए हैं ऐसे में नितीश को लेकर भाजपा की रैलियों पर हमलों को लेकर टिपण्णी किया जाना एक तरह से सम्भाव्य है किन्तु सही नहीं क्योंकि कोई भी मुख्यमंत्री ये नहीं चाहेगा कि उसके राज्य में शासन व्यवस्था पर ऐसा कलंक लगे जो आगे उसके सत्ता में आने के सभी रास्ते बंद कर दे और कांग्रेस को तो ऐसे में घसीटा जाना एक आदत सी बन गयी है और जैसे कि पंजाबी में एक कहावत है कि - ''वादड़िया सुजा दड़िया जप शरीरा नाल .'' तो ये

नौजवानो की नहीं तवलीन जी की निराशा को समझिये .

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नौजवानो की नहीं तवलीन जी की निराशा को समझिये . सोमवार २८ अक्टूबर २०१३ अमर उजाला का सम्पादकीय पृष्ठ नजरिया तवलीन सिंह का ''नौजवानों की निराशा को समझिये ''और कुछ तो समझ में आया नहीं ,आया तो बस इतना कि तवलीन सिंह जी निराश हैं और अपनी इस निराशा को नौजवानों के मत्थे मढ़ना चाह रही हैं . तवलीन जी कहती हैं कि ''राहुल गांधी के भाषण मैंने पिछले सप्ताह ध्यान से सुने .इसलिए कि उनके राजस्थान दौरे से तीन दिन पहले मैं कानपूर गयी थी नरेंद्र मोदी की उत्तर प्रदेश में पहली आम सभा देखने .विशाल जलसा था ,जैसे जनता का सैलाब उमड़ आया हो और घंटों तक वह चमचमाती धूप में इंतज़ार करती रही मोदी का .इतने लोग आये थे उनको सुनने और मोदी जब मंच पर पहुंचे तो इतना जोश दिखाया कि अपना भाषण मोदी ने यह कहकर शुरू किया कि कानपूर की जनता ने उनको जीत लिया .''...... उनके भाषण या भीड़ का तवलीन जी पर क्या असर हुआ इसकी झलक तो स्वयं उनके इस आलेख में ही मिल जाती है -''वे कहती हैं इसके बाद मोदी ने तकरीबन अपना सारा भाषण विकास से जुड़े मुद्दों पर दिया और लोगों के सामने एक नए भारत ,एक नए सपने का र

नारी की सशक्तता यहाँ देखो /इनमे देखो .

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  नारी की सशक्तता यहाँ देखो /इनमे देखो . मैंने बहुत पहले एक आलेख लिखा था- नारी शक्ति का स्वरुप:कमजोरी केवल भावुकता/सहनशीलता ये सर्वमान्य तथ्य है कि महिला शक्ति का स्वरुप है और वह अपनों के लिए जान की बाज़ी  लगा भी देती है और दुश्मन की जान ले भी लेती है.नारी को अबला कहा जाता है .कोई कोई तो इसे बला भी कहता है  किन्तु यदि सकारात्मक रूप से विचार करें तो नारी इस स्रष्टि की वह रचना है जो शक्ति का साक्षात् अवतार है.धेर्य ,सहनशीलता की प्रतिमा है.जिसने माँ दुर्गा के रूप में अवतार ले देवताओं को त्रास देने वाले राक्षसों का संहार किया तो माता सीता के रूप में अवतार ले भगवान राम के इस लोक में आगमन के उद्देश्य को  साकार किया और पग-पग पर बाधाओं से निबटने में छाया रूप  उनकी सहायता की.भगवान विष्णु को अमृत देवताओं को ही देने के लिए और भगवान् भोलेनाथ  को भस्मासुर से बचाने के लिए नारी के ही रूप में आना पड़ा और मोहिनी स्वरुप धारण कर उन्हें विपदा से छुड़ाना पड़ा. हमारे संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है - "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता." प्राचीन काल  का

गागर में भरती सागर ,ये दिल से ''शालिनी'' है .

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दफनाती मुसीबत को ,दमकती दामिनी है . कोमल देह की मलिका ,ख्वाबों की कामिनी है , ख्वाहिश से भरे दिल की ,माधुरी मानिनी है . .............................................................. नज़रें जो देती उसको ,हैं मान महनीय का , देती है उन्हें आदर ,ऐसी कामायनी है . .......................................................... कायरता भले मर्दों को ,आकर यहाँ जकड़ ले , देती है बढ़के संबल ,साहस की रागिनी है . ................................................................... कायम मिजाज़ रखती ,किस्मत से नहीं रूकती , दफनाती मुसीबत को ,दमकती दामिनी है . .................................................................... जीवन के हर सफ़र में ,चलती है संग-संग में , गागर में भरती सागर ,ये दिल से ''शालिनी'' है . ............................................................................ शब्दार्थ -महनीय-पूजनीय /मान्य ,कामायनी -श्रृद्धा ,कायम मिजाज़ -स्थिर चित्त ,शालिनी -गृहस्वामिनी . शालिनी कौशिक [कौशल ]

यहाँ नारी का आदर नहीं हो सकता

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अभी अभी रामायण में लव-कुश रामायण देखी मन विह्वल हो गया और आंसू से भीग गए अपने नयन किन्तु नहीं झुठला सकता वह सत्य जो सीता माता माँ वसुंधरा की गोद में जाते हुए कहती हैं - ''माँ ! मुझे अपनी गोद में ले लो ,इस धरती पर परीक्षा देते देते मैं थक गयी हूँ ,यहाँ नारी का आदर नहीं हो सकता .'' एक सत्य जो न केवल माता सीता ने बल्कि यहाँ जन्म लेने वाली हर नारी ने भुगता है .एक परीक्षा जो नारी को कदम कदम पर देनी पड़ती है किन्तु कोई भी परीक्षा उसे खरा साबित नहीं करती बल्कि उसके लिए आगे का मार्ग और अधिक कठिन कर देती है . माता सीता ने जो अपराध नहीं किया उसका दंड उन्हें भुगतना पड़ा .लंकाधिपति रावन उनका हरण कर ले गया और उन्हें ढूँढने में भगवान राम को और रावन का वध करने में जो समय उन्हें लगा वे उस समय में वहां रहने के लिए बाध्य थी इसलिए ऐसे में उन्हें वहां रहने के लिए कलंकित करना पहले ही गलत कृत्य था और राजधर्म के नाम पर माता सीता का त्याग तो पूर्णतया गलत कृत्य ,क्योंकि यूँ तो माता सीता तो देवी थी इसलिए उनका त्याग तो वैसे भी असहनीय ही रहा किन्तु इस कार्य ने एक गलत परंपरा की नीव रखी क्योंकि

करवा चौथ पर लें कसम

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करवा चौथ पर लें कसम दहेज़ के मामले एक कलंक हैं हमारे समाज पर और खास तौर पर तब जब ये उस देश में हों जहाँ करवा चौथ जैसे त्योहारों द्वारा पति पत्नी के जन्म जन्म का रिश्ता जोड़ा जाता हो और ये दिखाते हैं कि आपस में जन्म-जन्म का रिश्ता जोड़ते हुए भी लोग अपने स्वार्थ को नहीं त्याग पाते और इसी का परिणाम है दहेज़ हत्या और दहेज़ के मामलों में पूरे परिवार का घसीटा जाना और जहाँ तक ये हैं कि पूरा परिवार फंसाया जाता है तो ये सही है क्योंकि जिम्मेदार तो पूरा परिवार होता है बहुत से घरों में देखा गया है कि जरा जरा सी बात पर पति पत्नी के बीच में कलह करायी जाती है और समाज में अपने झूठे अहम् को बड़ा रखने के लिए बहू पर अपने घर अर्थात मायके से रोज़ कुछ न कुछ लाने का दबाव दाल जाता है तो ऐसे में यदि दहेज़ हत्या होती है तो पूरे परिवार को प्रतिवादी बनाया जाना ज़रूरी होता है और अधिकांश मामलों में ये ही होता है इसलिए इस समबन्ध में बहुत ज्यादा विचार विमर्श की बात नहीं है यह तो कदाचित ही होता है कि लड़की वाले लड़के वालों को गलत फंसा दें पर ऐसे में भी सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो पति की ही होती है क्योंकि अपना सब कुछ छोड़कर उसकी प

हुकूमत पाक की सुन ले ,समय रहते संभल जा तू .

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सन्दर्भ - सीमा पर रात भर फायरिंग जम्मू। पाकिस्तान से लगने वाला भारत का सीमावर्ती इलाका शांत होने का नाम नहीं ले रहा। शुक्रवार पूरी रात पाकिस्तान की ओर से भारत की 14 सीमा चौकियों पर गोलाबारी की गई। इस गोलाबारी से बीएसएफ के दो जवान घायल हुए हैं। कुछ गांवों को भी नुकसान पहुंचा है। हुकूमत पाक की सुन ले ,समय रहते संभल जा तू . सामना हिन्द से न हो ,दहल जाए न तेरा खूं ! ......................................................... सफाया तेरा कर देंगे, अगर अपनी पर आ जाएँ , पलट कर देख पन्नों को ,बसी होगी उनमे खुशबू ! ............................................................................ न करते वार हम पहले ,नहीं करते हम मुंहजोरी, मगर करते हैं खात्मा ,कायर न समझना तू ! .................................................................. तुम्हारी नीयत पर पाकिस्तान ,सदा शक रहता है हमको , न झेलेंगें मगर अब हम ,हदों को तोड़ आया तू ! ............................................................................. भरा है आज गुस्से से ,''शालिनी''के संग भारत , मिलेगा हर करनी का फल ,न बख्शा ज

झंझट की जड़ -घूंघट

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आज सुबह की ही बात है मेरे घर के सामने दो महिलाएं एक टेलर की दुकान पर आई .सभी तरह से वे सास-बहू ही लग रही थी .उनमे से एक का मुंह तो खुला हुआ था और एक का घूंघट इतना अधिक लम्बा था कि उसके लिए टेलर की दुकान पर चढ़ना भी असंभव सा ही था किन्तु वह वहां चढ़ गयी और टेलर को उसकी सास उसका नाप भी दिलाने लगी तभी मुझे विद्या बालन का एक विज्ञापन स्लोगन याद आया -''वैसे तो आपको बहू का घूंघट तक उठाना गवारा नहीं .''ये स्लोगन न केवल उनके विज्ञापन में बल्कि समस्त भारत में प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि लगभग सारे में ही नारी की यही स्थिति है जब तक उसके सास ससुर जीवित रहते हैं वह घर में बगैर घूंघट रह नहीं सकती भले ही घूंघट उसके लिए दुर्घटना या मृत्यु का ही कारण न बन जाये . घूंघट नई नवेली बहू की शान कहा जाता है शर्म कहा जाता है और इसके ही कारण लगभग हम भारतीयों की मानसिकता में ये नई बहू के लिए ज़रूरी हो गया है .आश्चर्य तो तब हुआ जब हमारे यहाँ एक अध्यापक महोदय जो कि स्वयं कहीं बाहर से आकर बसे हैं और उनकी स्वयं की धर्मपत्नी जो कि सिर तक नहीं ढकती अपनी पुत्रवधू की घूंघट में रहने की अनिवार्

भोपाल से अहमदाबाद आते-आते मिट गई दूरियां!-कितनी सबने देखी

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भोपाल से अहमदाबाद आते-आते मिट गई दूरियां! -कितनी सबने देखी भाजपा में आजकल बहुत जोश है और बहुत शान से ये मोदी के झंडे तले २०१४ के चुनाव जीतने की होड़ में लगे हैं किन्तु बड़ा अफ़सोस होता है कि भगवन राम के नाम को लेकर सत्ता हासिल करने वाले और आगे सत्ता हासिल करने के ख्वाब देखने वाले उनके जीवन से रत्ती मात्र भी प्रेरणा ग्रहण नहीं करना चाहते . राम जिन्होंने अपने पिता द्वारा स्वयं युवराज पद पर अभिषिक्त किये जाने पर भी कद ऐतराज अभिव्यक्त किया था वहीँ यहाँ मोदी ने भाजपा के पितामह माने जाने वाले ''श्री लाल कृष्ण आडवानी ''जी को ही इस भूमिका में खड़ा कर दिया कि वे उनकी ताजपोशी का विरोध करें जबकि यहाँ मोदी का कर्तव्य एक आम भारतीय भली भांति जान सकता है और आकलन कर सकता है मोदी के लालच का . आडवानी जी हमारी राजनीति के पुराने जानकार हैं और जानते हैं कि मोदी की स्वीकार्यता गुजरात के बाहर नहीं है और इसी कारण उन्होंने इनकी ताजपोशी का विरोध किया किन्तु ये मोदी हैं जिन्होंने अपनी हठधर्मिता के आगे उन्हें टिकने नहीं दिया और चक्रव्यूह की रचना कर उन्हें ही सारे में सत्ता लोभी घोषित करा दिया और

ऐसी आस्था किस काम की

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ऐसी आस्था किस काम की फिर से एक बार आस्था पर असावधानी भारी पड़ी और भगवान के दर पर पहुंचकर भक्तों को मौत के मुहं में सामना पड़ा .यूँ तो भगवान के दर पर मौत बहुत पुण्यों का फल मानी जाती है किन्तु ये केवल ऊपरी बाते हैं अंदुरनी बात ये है कि इस तरह से अनायास मृत्यु की गोद में समाना मृतक के परिजनों को शोक के अथाह सागर में डुबो देता है .प्रशासन की लापरवाही सभी को दिखती है किन्तु ये क्या नहीं दिखती जो वास्तव में दिखनी चाहिए ..... हर जगह श्रृद्धालुओं की इतनी अधिक संख्या ............इस पर रोक न तो जनता स्वयं लगाती है और न ही इनपर रोक किसी और द्वारा लगायी जा सकती है क्योंकि ये आस्था का विषय है और जो भी ऐसे में रोक लगता है उसे अनर्गल आलोचना भी झेलनी होती है और वोटो का अकाल भी .फिर सबसे बड़ा हथियार तो इन्हें हमारे संविधान ने ही दे दिया है देश में कहीं भी भ्रमण की स्वतंत्रता . आज आवश्यकता इस बात कि है कि ऐसी धार्मिक आस्थाओं पर प्रशासनिक अंकुश लगाया जाये क्योंकि ये न केवल धर्म का मजाक उड़ा रही हैं बल्कि धर्म के नाम पर प्रशासन के लिए नई नई मुश्किलें खड़ी कर रही हैं आज ऐसी ही आस्थाएं उच्चतम न्यायालय को भी

अखिल जगत में राम नारी का इसलिए अभिमान हैं .

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मर्यादा से बंधे हुए वे पुरुषोत्तम भगवान हैं , दशरथ जी के राजदुलारे मनभावन श्रीराम हैं . मात सुमित्रा कैकयी का वे कौशल्या सम मान करें , भरत शत्रुघ्न लखन लाल को ये प्रभु का वरदान हैं . पालन करें पितु वचन का ब्रह्म ऋषि के साथ चले , करते वध हैं राक्षसों का रखते यज्ञ का ध्यान हैं . ब्रह्म ऋषि की आज्ञा मानी धनुष यज्ञ में भाग लिया , सीता से नाता जोड़ें वे रखते क्षत्रिय मान हैं . वचन पिता ने दिए मात को पूरा उनको राम करें , राज-पाट से श्रेष्ठ ह्रदय में तब वन का स्थान है . लखन सिया के संग संग वन में ऋषियों के उपदेश सुनें, रक्षा करते सभी जनों की करते नहीं गुमान हैं . न्याय दिलाएं मित्र को अपने बालिवध का काज करें , मित्रता का समस्त विश्व में सर्वश्रेष्ठ प्रमाण हैं . सिया हरण का सबक सिखाने रावन का संहार करें , अखिल जगत में राम नारी का इसलिए अभिमान हैं . शालिनी कौशिक [कौशल ]