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मार्च, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जया प्रदा भारतीय राजनीति में वीरांगना

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जया प्रदा भारतीय राजनीति में वीरांगना     Ek Mulaqat is a talk show on India’s public broadcaster – Doordarshan News . It is hosted by the journalist Manoj Tibrewal Aakash . The show currently runs on Saturdays 2130 hrs with repeat Sundays 2330 hrs Indian time. [1] [2] Several Indian Cabinet Ministers, Members of Indian Parliament, industrialists and Bollywood personalities have featured in this programme. These include Ambika Soni , Jyotiraditya Scindia , Naveen Jindal, Vilasrao Deshmukh, Deepika Padukone, Javed Akhtar, Mohinder Amarnath, and Dr. S.Y. Quraishi. In August 2010, on the show, noted Bollywood actress Deepika Padukone praised the young Indian Member of Parliament, Rahul Gandhi as a “classical role model” for youth and expressed the hope that he leads India as prime minister one day.  इसे कहते हैं बहादुरी जो राजनीति जैसी स्वार्थी जगह पर रहते हुए जयाप्रदा जी रखती हैं .हमने नहीं देखा किसी भी राजनीतिज्ञ को सीधे बात करते . ये ही तो खासियत होती है राजनीतिज्ञों की,

मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई .

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मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई . ''तरन्नुम,तरन्नुम,तरन्नुम,तरन्नुम , है गुमसुम,है गुमसुम,है गुमसुम,है गुमसुम, ये लोगों का लश्कर कहाँ जा रहा है , जहन्नुम,जहन्नुम,जहन्नुम,जहन्नुम.''    आज सारा देश होली के रंगों में सराबोर है और जिसे देखो इसे पूर्ण रूप से भारतीय सभ्यता संस्कृति के अनुसार मनाये जाने की बात कह रहा है किन्तु भारतीय सभ्यता संस्कृति की जो धज्जियाँ हमारे कुछ माननीय नेतागण को लेकर उड़ाई जा रही हैं उस और सभी इस बात को कहते हैं कि ''जो जैसा करेगा वैसा भरेगा ,''अर्थात ये हमारे नेतागणों के कुकृत्य ही हैं जिनके कारण आज उनके साथ इस तरह के बर्ताव को अंजाम दिया जा रहा है .जनता तो इस बात को कह सकती है किन्तु जब हमारे नेतागण ''जो कि उसी मंडली के सदस्य हैं ''वे ऐसा कहते हैं तो क्या हमें  हमें विचार नहीं करना चाहिए कि ये ऐसा कहने के कैसे अधिकारी हो सकते हैं किन्तु ऐसा नहीं है हम भी उनके साथ जुड़कर उसी असभ्यता पर उतर आते हैं और भुला देते हैं उस संस्कृति को जिसके गुणगान सारा विश्व करता है और जिसके कारण सभी जगह इस संस्कृति की पूजा की जा

होली की शुभकामनायें तभी जब होली ऐसे मनाएं

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  ·             कल जब मैं बाज़ार से घर लौट रही थी तो देखा   कि स्कूलों से बच्चे रंगे हुए लौट रहे हैं और वे खुश भी थे जबकि मैं उनकी   यूनीफ़ॉर्म के रंग जाने के   कारण ये सोच रही थी कि जब ये घर पहुंचेंगे तो इनकी मम्मी ज़रूर इन पर गुस्सा होंगी .बड़े होने पर हमारे मन में ऐसे ही भाव आ जाते हैं जबकि किसी भी त्यौहार का पूरा   आनंद    बच्चे ही लेते हैं क्योंकि वे बिलकुल निश्छल भाव से भरे होते हैं और हमारे मन चिंताओं से ग्रसित हो जाते हैं किन्तु ये बड़ों का ही   काम है कि वे बच्चों में ऐसी भावनाएं भरें जिससे बच्चे अच्छे ढंग से होली मनाएं.हमें चाहिए कि हम उनसे कहें कि होली आत्मीयता का त्यौहार है इसमें हम सभी को मिलजुल कर आपस में ही त्यौहार मानना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की हमारे काम से किसी के दिल को चोट न पहुंचे.ये कह कर   कि "बुरा न मानो    होली है "कहने से गलत काम को सही नहीं किया जा सकता इसलिए कोशिश करो कि हम सबको ख़ुशी पहुंचाएं .किसी उदास चेहरे पर   मुस्कुराहट    लाना हमारा त्यौहार   मनाने का प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए.फिर इस त्यौहार पर हम आज कुछ गलत वस्तुओं का प्

शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं .

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शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं .    जमील मानवी के शब्दों में - ''तेरी हथेली पर रखा हुआ चिराग हूँ मैं , तेरी ख़ुशी है कि जलने दे या बुझा दे मुझे.'' शख्सियत होना और एक चिराग होना एक ही बात है. हर कोई चाहता है कि मैं एक कामयाब इन्सान बनूँ और अपने खानदान का चश्म-ओ-चिराग और दोनों ही स्थितियां ऐसी हैं जिसमे ऐसी चाह रखने वाला ऐसा जलता है जैसे दिया और ये चाहत उसे भीतर तक भस्म कर डालती है भले ही बाहर से वह कितना ही रोशन दिखाई दे भीतर से वह खत्म हो चुका होता है .कुछ ऐसी ही विडम्बना से भरा है संजय दत्त का जीवन .       साल १९९२ अयोध्या कांड मुंबई के लिए तो भयावह साबित हुआ ही साथ ही दुखदायी कर गया सुनील दत्त का जीवन और भी ,जो कि पहले से ही संजय दत्त की जीवन शैली से आजिज था .अपनी माँ नर्गिस की असमय मृत्यु से संजय दत्त इतने भावुक हुए कि नशेबाज हो गए और बाद में अपने पिता की मदद की प्रवर्ति के कारण कानून तोड़ने वाले और ये बहुत भारी पड़ा सुनील दत्त पर लगातार मिलती धमकियाँ सुनील दत्त को तो नहीं डरा सकी किन्तु ३३ वर्षीय यह युवा अपनी दो बहनों और अपनी पत्नी व्

अमिताभ बच्चन :सामाजिक और फ़िल्मी शानदार शख्सियत

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अमिताभ बच्चन :सामाजिक और फ़िल्मी शानदार शख्सियत   फुल्ल कमल ,       दूध नवल, गोद नवल,          पूत नवल, मोद नवल,          वंश में विभूति नवल, गेंहू में विनोद नवल,  नवल दृश्य , बाल नवल,          नवल दृष्टि , लाल नवल ,         जीवन का नव भविष्य , दीपक में ज्वाल नवल , जीवन की नवल सृष्टि .       जानते हैं हरिवंश राय ''बच्चन''जी की इस कविता की सृष्टि किस हस्ती के लिए हुई ,उन्ही के लिए जो न केवल उनके वंश की वरन हमारे भारतवर्ष की विभूति हैं . सितारों की दुनिया बोलीवूड  पर एक लम्बे समय से राज करने वाले अमिताभ जी ने जब हरिवंश राय जी के यहाँ जन्म किया तो एक  कवि ह्रदय से यही उद्गार प्रगट होने थे और हुए किन्तु जैसे कि माँ-बाप को तो अपने सभी बच्चे प्रिय होते हैं किन्तु कितने बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने माँ-बाप के सपनों पर खरे उतरें ये सवाल भविष्य के गर्त में ही छिपा रहता है और अमिताभ जी वह विभूति हैं जो अपने माता -पिता के सपनों पर खरे उतरे और न केवल खरे उतरे बल्कि एक बहुत अच्छे पुत्र ,पति ,पिता और सबसे बड़ी बात है कि इन्सान साबित हुए। माता पिता की सेवा को अमिता

हाय रे .!..मोदी का दिमाग ...................

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हाय रे .!..मोदी का दिमाग ...................     नरेन्द्र मोदी ने राहुल गाँधी की ओर संकेत करते  हुए  कहा कि कोई बाहें चढ़ाकर यह कहे कि हमारी सरकार ने  इस एक्ट या उस एक्ट को लागू किया तो इस पर मेरा कहना  है कि ये आपकी सरकार ने नहीं किया है ,ये सब तो संविधान द्वारा दी गयी चीज़ें हैं ,केंद्र में जो भी सरकार होगी जनहित में एक्ट लागू करना उसकी जिम्मेदारी है ...मैं यह पढ़ ही रही थी कि मेरी कामवाली बाई एकदम बोल उठी कि दीदी ये क्या कह गए ये मोदी ?इनमे दिमाग भी है या नहीं .अब भला मैं आपके यहाँ काम करती हूँ तो जो काम मैं करती हूँ वह क्या नहीं कहूँगी कि मैंने किया है ?अब भला आप मुझे इसके पैसे देती हो तो मेरी ये जिम्मेदारी है पर काम जो मैं अच्छे से कर रही हूँ कहूँगी तो हूँ न ....मैं सहमति में सिर हिलाती इससे पहले ही एक साथी वकील बोल उठे बिल्कुल सही कह रही है यशोदा बिल्कुल सही ,...अब मैं केस लड़ता हूँ ,मुझे फीस मिलती है और मैं मेहनत कर उसे जीतता हूँ तो मैं यही तो कहूँगा कि मैंने ये केस लड़ा है और जीता है ,इसमें इन जनाब को दिक्कत क्यूं आ गयी?मैं भी असमंजस में पड़ गयी कि आखिर किसे सही कहूं किसे गलत ?

मृत शरीर को प्रणाम :सम्मान या दिखावा

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मृत शरीर को प्रणाम :सम्मान या दिखावा अरस्तू के अनुसार -''मनुष्य एक सामाजिक प्राणी  है समाज जिससे हम जुड़े हैं वहां रोज़ हमें नए तमाशों के दर्शन होते हैं .तमाशा ही कहूँगी मैं इन कार्यों को जिनकी आये दिन समाज में बढ़ोतरी हो रही है .एक शरीर ,जिसमे प्राण नहीं अर्थात जिसमे से आत्मा निकल कर अपने परमधाम को चली गयी ,को मृत कहा जाता है और यही शरीर जिसमे से आत्मा निकल कर चली गयी बड़ी संख्या में लोगों द्वारा उस आत्मा के ही कारण अंतिम प्रणाम किये जाने को अंतिम दर्शन हेतु रखा जाता है जबकि आत्मा के जाने के बाद शरीर मात्र एक त्यागा हुआ वस्त्र रह जाता है .आत्मा के शरीर त्यागने के बाद जल्दी से जल्दी अंतिम संस्कार की क्रिया को अंजाम दिया जाता है क्योंकि जैसे जैसे देरी होती है शरीर का खून पानी बनता है और वह फूलना  शुरू हो जाता है साथ ही उसमे से दुर्गन्ध निकालनी आरम्भ हो जाती है ..अंतिम संस्कार का अधिकार हमारे वेद पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र को दिया गया है जिसे कभी कभी संयोग या सुविधा की दृष्टि से कोई और भी अंजाम दे देता है और अंतिम संस्कार करने वाले की वहां उपस्थिति को ऐसी स्थिति को देखते

''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .

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  आज करूँ आगाज़ नया ये अपने ज़िक्र को चलो छुपाकर , कदर तुम्हारी नारी मन में कितनी है ये तुम्हें बताकर .   जिम्मेदारी समझे अपनी सहयोगी बन काम करे , साथ खड़ी है नारी उसके उससे आगे कदम बढाकर .   बीच राह में साथ छोड़कर नहीं निभाता है रिश्तों को , अपने दम पर खड़ी वो होती ऐसे सारे गम भुलाकर .   कैद में रखना ,पीड़ित करना ये न केवल तुम जानो , जैसे को तैसा दिखलाया है नारी ने हुक्म चलाकर .   धीर-वीर-गंभीर पुरुष का हर नारी सम्मान करे , आदर पाओ इन्हीं गुणों को अपने जीवन में अपनाकर .   जो बोओगे वो काटोगे इस जीवन का सार यही , नारी से भी वही मिलेगा जो तुम दोगे साथ निभाकर .   जीवन रथ के नर और नारी पहिये हैं दो मान यही , ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .                         शालिनी कौशिक   [WOMAN ABOUT MAN] आज तक पुरुष ही महिला के सम्बन्ध में अपने विचार अभिव्यक्त करता रहा है और इस समबन्ध में ब्लॉग जगत में बहुत से ब्लॉग हैं जैसे भारतीय नारी ,नारी आदि .८ मार्च २०१३ से मैंने भी एक सामूहिक ब्लॉग की शुरुआत की है जिसका नाम है ''   [WOMA

तवलीन सिंह की रोटी बंद होने वाली है

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तवलीन सिंह की रोटी बंद होने वाली है तवलीन सिंह की रोटी बंद होने वाली है .क्यूं ?पड़ गए न आश्चर्य में ,जबकि ये आश्चर्य नहीं सत्य है .नेहरु गाँधी परिवार की अनर्गल आलोचना तवलीन को रोटी दिलाती है किन्तु ये आलोचना तभी तो मान्य है जब यह परिवार सत्ता में हो और वर्तमान में कॉंग्रेस नेतृत्व की विफलता और विपक्ष की निरंतर साजिशों ने लगभग इस सरकार के लिए बाहर जाने का  रास्ता तैयार कर दिया है .             नेहरु गाँधी परिवार जनता में अपनी लोकप्रियता और सत्ता में लम्बी उपस्थिति के कारण आलोचना के घेरे में आता ही रहता है .यह आलोचना यदि सकारात्मक हो तो विवाद या निंदा का न होकर विचार का विषय होगी किन्तु यह अधिकांशतया अनर्गल प्रलाप पर ही आधारित रहती है .मृणाल पांडे  जैसी वरिष्ठ पत्रकार भी इस परिवार के राहुल गाँधी की आलोचना करती हैं किन्तु उनके सही क़दमों की तारीफ भी करती हैं  किन्तु तवलीन सिंह बेसिर-पैर की बाते ही ज्यादा लिखती हैं .महीने में लगभग ५ आलेख उनके हमारे सामने आते हैं और इनमे तभी कुछ विभिन्नता होती है जब कोई विशेष या उत्तेजनात्मक घटना घटित हो जाये नहीं तो उनकी कलम नेहरु गाँधी परिवार से इतर लि

मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं .

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मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं . ''आंधी ने तिनका तिनका नशेमन का कर दिया , पलभर में एक परिंदे की मेहनत बिखर गयी .'' फखरुल आलम का यह शेर उजागर कर गया मेरे मन में उन हालातों को जिनमे गलत कुछ भी हो जिम्मेदार नारी को ठहराया जाता है जिसका सम्पूर्ण जीवन अपने परिवार के लिए त्याग और समर्पण पर आधारित रहता है .किसी भी सराहनीय काम का श्रेय लेने के नाम पर जब सम्पूर्ण समाज विशेष रूप से पुरुष वर्चस्ववादी समाज आगे बढ़ सीना तान कर खड़ा हो जाता है तो समाज में घटती अशोभनीय इन वारदातों का ठीकरा नारी के सिर क्यों फोड़ते हैं ?जबकि मासूम बच्चियां जिस यौन दुर्व्यवहार की शिकार हो रही हैं उसका कर्ता-धर्ता तो पुरुष ही है .    आधुनिक महिलाएं आज निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही हैं और ये बात पुरुष सत्तात्मक समाज को फूटी आँख भी नहीं सुहाती और इसलिए सबसे अधिक उसकी वेशभूषा को ही निशाना बनाया जाता है .सबसे ज्यादा आलोचना उसके वस्त्र चयन को लेकर ही होती है .जैसे कि एक पुराने फ़िल्मी गाने में कहा गया- ''पहले तो था चोला बुरका,    फिर कट कट के वो

प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६ यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं -अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

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 प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६  यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं ८ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मई २००६ में प्रथम घोषित अपना एक निबन्ध आपसे साझा कर रही हूँ . इतिहास साक्षी है कि जब भी नारी को समाज व् राष्ट्र ने अपनी योग्यता दिखाने  का अवसर और अधिकार दिया तब तब नारी ने अपने को नेतृत्व  की कसौटी पर खरा साबित किया है .विश्व में महिलाओं की योग्यता का एक भरा पूरा इतिहास है .भारतीय महिलाओं द्वारा विश्व में अपनी योग्यता का कीर्तिमान नेतृत्व के क्षेत्र में स्थापित किया गया है .       कर्नाटक प्रदेश के एक छोटे से राज्य कित्तूर के राजा मल्ल्सर्जा की पत्नी रानी चेनम्मा थी .१८१६ ईस्वी  में  मल्लसर्जा का असामयिक निधन होने पर और फिर उसके बाद पुत्र रुद्र्सर्जा के उत्तराधिकारी होने पर श्री भगवान को प्यारे हो जाने पर अंग्रेजों ने कित्तूर को हड़पने का प्रयास किया .पुत्र की मृत्यु के बाद रानी चेनम्मा ने अपना कर्तव्य समझकर राज्य की बागडोर संभाली और अंग्रेजों के साथ प्रथम युद्ध में नेतृत्व विहीन अंग्रेजी सेना पर विजय प्रा