छोटी मोटी मांगे न कर , अब राज्य इसे बनवाएँगे .''


                           
 पश्चिमी यू.पी.उत्तर प्रदेश का सबसे समृद्ध क्षेत्र है .चीनी उद्योग ,सूती वस्त्र उद्योग ,वनस्पति घी उद्योग ,चमड़ा उद्योग आदि आदि में अपनी पूरी धाक रखते हुए कृषि क्षेत्र में यह उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वाधिक राजस्व प्रदान करता है .इसके साथ ही अपराध के क्षेत्र में भी यह विश्व में अपना दबदबा रखता है .यहाँ का जिला मुजफ्फरनगर तो बीबीसी पर भी अपराध के क्षेत्र में ऊँचा नाम किये है और जिला गाजियाबाद के नाम से तो अभी हाल ही में एक फिल्म का भी निर्माण किया गया है .यही नहीं अपराधों की राजधानी होते हुए भी यह क्षेत्र धन सम्पदा ,भूमि सम्पदा से इतना भरपूर है कि बड़े बड़े औद्योगिक घराने यहाँ अपने उद्योग स्थापित करने को उत्सुक रहते हैं और इसी क्रम में बरेली मंडल के शान्ह्जहापुर में अनिल अम्बानी ग्रुप के रिलायंस पावर ग्रुप की रोज़ा  विद्युत परियोजना में २८ दिसंबर २००९ से उत्पादन शुरू हो गया है .सरकारी नौकरी में लगे अधिकारी भले ही न्याय विभाग से हों या शिक्षा विभाग से या प्रशासनिक विभाग से ''ऊपर की कमाई'' के लिए इसी क्षेत्र में आने को लालायित रहते हैं .इतना सब होने के बावजूद यह क्षेत्र पिछड़े हुए क्षेत्रों में आता है क्योंकि जो स्थिति भारतवर्ष की अंग्रेजों ने की थी वही स्थिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बाकी उत्तर प्रदेश ने व् हमारे भारतवर्ष ने की है .
     ''सोने की चिड़िया''अगर कभी विस्तृत अर्थों में भारत था तो सूक्ष्म अर्थों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश आज भी है .यहाँ से लेने को तो सभी लालायित रहते हैं किन्तु देने के नाम पर ठेंगा दिखाना एक चलन सा बन गया है .आज पूरा पूर्वी उत्तर प्रदेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दम पर फल-फूल रहा है .छात्रों को राज्य सेवा ,शिक्षा में कहीं भी आने के लिए परीक्षा देनी हो तो अपने पैसे व् समय अपव्यय करने के लिए तैयार रहो और चलो इलाहाबाद या लखनऊ .समझौते की गुंजाईश न हो ,मरने मिटने को ,भूखे मरने को तैयार हैं तो चलिए इलाहाबाद ,जहाँ पहले तो बागपत से ६४० किलोमीटर ,मेरठ से ६०७ किलोमीटर ,बिजनोर से ६९२ किलोमीटर ,मुजफ्फरनगर से ६६० किलोमीटर ,सहारनपुर से ७५० किलोमीटर ,गाजियाबाद से ६३० किलोमीटर ,गौतमबुद्ध नगर से ६५० किलोमीटर ,बुलंदशहर से ५६० किलोमीटर की यात्रा कर के धक्के खाकर ,पैसे लुटाकर ,समय बर्बाद कर पहुँचो फिर वहां होटलों में ठहरों ,अपने स्वास्थ्य से लापरवाही बरत नापसंदगी का खाना खाओ ,गंदगी में समय बिताओ और फिर न्याय मिले न मिले ,परीक्षा पास हो या न हो उल्टे पाँव उसी तरह घर लौट आओ .ऐसे में १९७९ से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट खंडपीठ के आन्दोलन कारियों में से आगरा के एक अधिवक्ता अनिल प्रकाश रावत जी द्वारा विधि मंत्रालय से यह जानकारी मांगी जाने पर -''कि क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खंडपीठ स्थापना के लिए कोई प्रस्ताव विचाराधीन है ?''पर केन्द्रीय विधि मंत्रालय के अनुसचिव के.सी.थांग कहते हैं -''जसवंत सिंह आयोग ने १९८५ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ स्थापित करने की सिफारिश की थी .इसी दौरान उत्तराखंड बनने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिले उत्तराखंड के अधिकार क्षेत्र में चले गए वहीँ नैनीताल में एक हाईकोर्ट की स्थापना हो गयी है .इस मामले में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की राय मागी गयी थी .इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश  ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की किसी शाखा की स्थापना का कोई औचित्य नहीं पाया है .''
     सवाल ये है कि क्या उत्तराखंड बनने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट से दूरी घट गयी है ?क्या नैनीताल हाईकोर्ट इधर के मामलों में दखल दे उनमे न्याय प्रदान कर रही है ?और अगर हाईकोर्ट के माननीय  मुख्य न्यायाधीश को इधर खंडपीठ की स्थापना का कोई औचित्य नज़र नहीं आता है तो क्यों?क्या घर से जाने पर यदि किसी को घर बंद करना पड़ता है तो क्या उसके लिए कोई सुरक्षा की व्यवस्था की गयी है ?जबकि यहाँ यू.पी.में तो ये हाल है कि जब भी किसी का घर बंद हो चाहे एक दिन को ही हो चोरी हो जाती है .और क्या अपने क्षेत्र से इलाहाबाद तक के सफ़र के लिए किसी विशेष सुविधा की व्यवस्था की गयी है ?जबकि यहाँ यू.पी. में तो आर.पी.ऍफ़.वाले ही यात्रियों को ट्रेन से धकेल देते हैं .राजेश्वर व् सरोज की घटना अभी एक दिन पूर्व की ही है जिसमे सरोज की जान ही चली गयी .क्या इलाहाबाद में वादकारियों के ठहराने व् खाने के लिए कोई व्यवस्था की गयी है ?जबकि वहां तो रिक्शा वाले ही होटल वालों से कमीशन खाते हैं और यात्रियों को स्वयं वहीँ ले जाते हैं .और क्या मुक़दमे लड़ने के लिए वादकारियों को वाद व्यय दिया जाता है या उनके लिए सुरक्षा का कोई इंतजाम किया जाता है ?जबकि हाल तो ये है कि दीवानी के मुक़दमे आदमी को दिवालिया कर देते हैं और फौजदारी में आदमी कभी कभी अपने परिजनों व् अपनी जान से भी हाथ धो डालता है .पश्चिमी यू.पी .की जनता को इतनी दूरी के न्याय के मामले में या तो अन्याय के आगे सिर झुकाना पड़ता है या फिर घर बार  लुटाकर न्याय की राह पर आगे बढ़ना होता है .
     न्याय हो या शिक्षा का क्षेत्र दोनों में ही यदि हाईकोर्ट व् सरकार अपनी सही भूमिका निभाएं तो बहुत हद तक जन कल्याण भी कर सकती है और न्याय भी .आम आदमी जो कि कानून की प्रक्रिया के कारण ही बहुत सी बार अन्याय  सहकर घर बैठ जाता है और दूरी को देख छात्र परीक्षा देने से पीछे हट जाता है ,दोनों ही आगे बढ़ेंगे यदि हाईकोर्ट ,शिक्षा प्रशासन ,सरकार सही ढंग से कार्य करें .यह हमारा देश है हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था है फिर हमें ही क्यों परेशानी उठानी पड़ती है ?यदि वेस्ट यू.पी.में हाईकोर्ट की खंडपीठ स्थापित की जाती है तब निश्चित रूप से मुक़दमे बढ़ेंगे और इनसे होने वाली आय से जो सरकारी खर्च में इस स्थापना के फलस्वरूप बढ़ोतरी हुई होगी वह तो पूरी होगी ही सरकार की आय में भी बढ़ोतरी होगी और जनता में सरकार के प्रति विश्वास भी बढेगा जो सरकार के स्थायित्व के लिए व् भविष्य में कार्य करने के लिए बहुत आवश्यक है .   शिक्षा परीक्षा की जो प्रतियोगिताएं इलाहाबाद ,लखनऊ में आयोजित की जाती हैं उससे वहां पर छात्रों व् उनके परिजनों की बहुत भीड़ बढती है जिसके लिए प्रशासन को बहुत सतर्कता से कार्य करना होता है उसे यदि  जिले या मंडलों के कॉलेज में बाँट दिया जाये तो सरकार पर इतने इंतजाम का बोझ नहीं पड़ेगा और प्रतिभागियों को भी सुविधा रहेगी .वे आसानी से सुबह को अपने घर से जाकर शाम तक घर पर लौट सकेंगे और इस तरह न उन्हें अपने घर की चिंता होगी और न प्रशासन को व्यवस्था की . किन्तु पूर्व का अर्थात इलाहाबाद व् लखनऊ का राजनीतिक प्रभाव इतना ज्यादा है कि कुछ भी ऐसा नहीं किया जायेगा जिससे पश्चिम की जनता वहां से कटे और उनकी आमदनी पर प्रभाव पड़े भले ही इधर की जनता लुटती पिटती रहे .इसलिए कोई भी प्रयास जो इस दिशा में किया जाता है वह सफल नहीं होता .चाहे केन्द्रीय रेल बजट हो या उत्तर प्रदेश सरकार का बजट हो इधर के लिए ऐसे ही काम किये जाते हैं जो ''ऊंट के मुहं में जीरा'' ही साबित होते हैं .रेल बजट में दिल्ली-सहारनपुर वाया शामली रूट के दोहरीकरण के नाम पर सर्वे का लॉलीपाप ही दिया गया .उत्तर प्रदेश सरकार के बजट में २५९ सेतुओं के निर्माण का प्रावधान है जिसमे से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मात्र 9 सेतु ही हैं .
    आज स्थिति ये है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ठगा जा रहा है और ये यहाँ की जनता को ही अब सोचना होगा कि उसे मात्र कुछ भाग लेना है या अपना पूरा अधिकार .कृषि ,उद्योग ,धन आदि सभी संपदाओं से भरपूर इस क्षेत्र को अब छोटे मोटे इन तुच्छ प्रलोभनों का मोह त्यागना होगा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए ही आगे बढ़ना होगा क्योंकि इसके बगैर यहाँ की जनता का कल्याण नहीं होगा और हर मामले में पूर्व को पश्चिम के सिर पर ही बैठाया जाता रहेगा .इसलिए अब तो यहाँ की जनता को यही कहना होगा -
       ''बहकावों में न आयेंगे ,
           अपनी सरकार बनायेंगे .
       तुम ना समझोगे औचित्य ,
            हम ना तुमको समझायेंगे .
        हम जनता हैं ,हम ताकत हैं ,
           अब तुमको भी दिखलायेंगे .

         छोटी मोटी मांगे न कर ,
          अब राज्य इसे बनवाएँगे .''
    शालिनी कौशिक
        [कौशल]

टिप्पणियाँ

Anita ने कहा…
पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित सहारनपुर में हमारा पुश्तैनी घर है..वहाँ भी विकास की गति बहुत कम है..जरूर कुछ होना चाहिए.
suniyojit vikas ke rajyo ke aakar ko chota karna behad zooruri ho gya hai,so aap ki mang zayaz hai,
Rohit Singh ने कहा…
आपकी बातों से सहमत हूं कि विकास की असमानता के कारण गड़बड़झाला है। परंतु मैं छोटे राज्यों के पक्ष में बिल्कुल नहीं है। वर्तमान के यूपी राज्य का संचालन अगर सही तरीके से नहीं हो रहा है तो इसका कारण सिर्फ अक्षम राजनेता और प्रशासनिक मशीनरी है। यही सवाल जब गोविंद वल्लभ पंत के सामने रखा गया था तो वो हैरत में पड़ गए थे। उन्होंने जवाब दिया था कि वो कैसे कहें कि एक पैर काट दो..एक हाथ काट दो। जाहिर है कि वर्तमान समस्या सिर्फ और सिर्फ योजनाओं को लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति औऱ बेइमान मशीनरी की वजह से है।
सब क्षेत्रों का समुचित विकास हो अब
Tamasha-E-Zindagi ने कहा…
सार्थक लेख


कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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छोटे राज्य बनाए जा सकते हैं और में छोटे राज्यों का विरोधी भी नहीं हूँ लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या पश्चिमी उतरप्रदेश को अलग राज्य बनाने से समस्या हल हो सकती है और वो भी उस स्थति में जबकि उतरप्रदेश में अक्षम राजनेताओं को लगातार जनता द्वारा सता सौंपी जा रही है इसलिए डर लगता है कहीं झारखंड वाली स्थति ना हो जाए !!
Smart Indian ने कहा…
समृद्धि के आधार पर राज्य का बंटवारा कब तक? मान लीजिये कि इस अधकचरे, स्वार्थी और संकीर्ण आधार पर यूपी काट दिया गया और फिर नया राज्य बनाने के बाद कल को नोएडा कहने लगेगा क मैं राज्य का सबसे समृद्ध भाग हूँ इसलिए इस पिछड़े राजी से अलग हो जाऊंगा तो क्या आज नए राज्य की मांग करने वाले उसे मानेंगे? यदि हां तो आज ही मान लीजिये और दो की जगह तीन टुकड़े की बात कीजिये, यदि नहीं तो बँटवारे की विषवेल को डिसकरेज करना शुरू कीजिये

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