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नवंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

man kahin aur chal............

बढ़ते भ्रष्टाचार पर बोलें सारे दल, अपने को पावन कहें दूजे को दलदल. जो भी देखो कर रहा एक ही जैसी बात, भ्रष्टाचार के छा रहे भारत में बादल. जनता के हितों की खातिर करते हैं ये सब, कहते ऐसी ही बातें मंच को बदल-बदल. देश की खातिर कर रहे जो ये देखो आज, कोई नहीं कर पायेगा चाहे आये वो कल. सत्ता की मदहोशी में बहके नेतागण, बोले उल्टा-पुल्टा ही मन कहीं और चल. a

khil jayega ye jeevan

मस्त बहारें छाने लगती हैं अनचाहे जीवन में, खुशियाँ हजारों बस जाती हैं चुपके से मेरे मन में . इच्छा होती है मिलकर सबसे कह दूं मन की सारी बात, कि क्या चाहा था हो गया क्या देखो अब मेरे साथ . मेरी चाह थी इस जीवन में कुछ ऊंचाईयों  को  छू  लूं, उठ सकती नहीं सबसे ऊपर इस स्तर से तो उठ लूं. पाकर थोड़ी सी सफलता प्रफुल्लित हो उठता है मन, पा लूं मैं यदि पूर्ण सफलता खिल जायेगा ये जीवन. ,

man kya kare?

ये मन मछली क्यों तैरती है हवा में,  जबकि मछली का जीवन तो पानी है. ये क्यों बनाती है हवा में महल,  जबकि धरती तो महलों की रानी है. यहाँ सोचते हैं सब अपनी ही अपनी,  कहाँ सोचता कोई दूजे की कहानी है . जो ना काम किसी के आ सकी ,  क्या वो भी कोई जवानी है? ये दुनिया धन के नशे में डूबी,  ये दौलत के पीछे दीवानी है. इससे जरा हटकर सोचो,  क्या तुम्हे भी जिंदगी गँवानी है?

phool

फूल कितना प्यारा व सुन्दर होता है    मगर उसके साथ भी एक गम है; वह बहुत कोमल होता है     और इसी कारण उसकी आँखें नम है. कांटे से सब दूर भागते      मगर उसे एक ख़ुशी है; जो भी चाहे उसे नष्ट करना      उसके उसकी नोक चुभी है. फूल के ही सम्बन्ध में एक कविता जो एक अन्य कवियत्री की है मुझे अच्छी लगी है आप भी पढ़ें और बताएं.... पुष्प    अच्छा अब फिर कुछ और लिखूंगी और आपके समक्ष प्रस्तुत karoongi.

prasannta

चित्र
वो एक हंसी पल जब तुम्हे नज़दीक पाया था, उमड़ आयी थी चेहरे पर हंसी, सिमट आयी थी करीब जिंदगी मेरी; मेरे अधरों पर हलकी सी हुई थी कम्पन; मेरी आँखों में तेज़ी से हुई थी हलचल; मेरा रोम-रोम घबराने लगा था; मेरा मन भी भरमाने    लगा था; तभी किसी ने धीरे से ये कहा था ; पहचाना मैं हूँ वह कली   , जो है तेरी बगिया में खिली; और प्रसन्नता जिसको कहते  हैं  सभी . महिला अधिकारों व अन्य कानूनी अधिकारों के विषय में मेरे कानूनी ज्ञान ब्लॉग को देखें.

jindgi ki lalak

" देख कर तुझे पाने की ललक में,         कर न जाएँ हम कुछ गलत कहीं ,             तुम चीज़ ही ऐसी हो,                  जिससे बढ़कर दुनिया में कुछ और नहीं. कोई चाहे तुम्हे या न चाहे,       तुम उसे मिल ही जाती हो,            सब पूछते हैं मुझसे,                   क्या तुम मेरी जिंदगी तो नहीं?

sampatti ek sirdard

आज ही क्या बहुत पहले से या यूं कहे सृष्टि के आरम्भ से आदमी को संपत्ति की चाह है.संपत्ति की चाह के कारण ही दुनिया ने बहुत कुछ देखा है.भारत जैसे राष्ट्र को कभी विदेशी हमलो तो कभी आतंरिक झगड़ो को भी संपत्ति के कारण ही झेलना पड़ा है.ये तो आप सभी जानते हैं कि भारत को सोने कि चिड़िया कहा जाता है और यही उपाधि इसकी लगभग दो सो वर्षो कि गुलामी का कारण बनी. संपत्ति को मैंने ऐसे ही सिरदर्द नहीं कहा है,मैं ही क्या ये तो आप सभी को पता है कि पैसा न हो तो परेशानी और पैसा हो तो और भी बड़ी परेशानी.एक तरफ पैसे क़ी कमी लोगो को आत्महत्या तक के लिए विवश कर देती है तो एक तरफ पैसे क़ी अधिकता meerut जैसे शहर में प्रोपर्टी deelar के पूरे परिवार क़ी हत्या करा देती है. संपत्ति न हो तो चिंता आदमी को सोने नहीं देती और संपत्ति हो तो उसे बचाने-बढ़ने क़ी इच्छा आदमी क़ी नींद छीन लेती है.. फिर भी यदि हम सही आकलन करे तो पैसे वाला होने के मुकाबले पैसे वाला न होना ज्यादा अच्छा है.मैं व्यक्तिगत रूप से दोनों तरह के लोगो को जानती हूँ और उनकी जिंदगी देखकर कह सकती हूँ कि जिनके पास पैसे नहीं हैं वे रात को अपने खुले असुरक्षित घर